बुलंदशहर, डेस्क (जय यात्रा): ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता। हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता अर्थात हस्त नक्षत्र युक्त ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष दशमी तिथि दश पापों को हरती है जिसे गंगा दशहरा कहते है। इस पर्व पर गंगा स्नान कर दान करने से मनुष्य दस प्रकार के पापों से मुक्त होकर जीवन में मनोवांक्षित फल के साथ सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है। भारतीय ज्योतिष कर्मकांड महासभा अध्यक्ष ज्योतिर्विद पंडित के0 सी0 पाण्डेय काशी वाले ने बताया कि गंगा दशहरा स्नान 5 जून गुरुवार को भोर में 3 बजकर 35 मिनट पर सर्वार्थसिद्धि योग तथा सिद्धि योग में हस्त नक्षत्र के लगते ही शुरु होगा। दशमी तिथि 4 जून की देर रात्रि 11.54 से 5 जून की देर रात्रि 2.16 तक रहेगा। अतः श्रद्धालु 5 जून को पूरे दिन स्नान दान कर पुण्य प्राप्त कर सकेंगे। ब्रह्म पुराण व वाराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के दशमी तिथि बुधवार को हस्त नक्षत्र में गर करण, वृष के सूर्य व कन्या के चन्द्रमा में दशहरे के दिन ही मोक्षदायिनी माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई। अतः इस शुभ मुहूर्त समय में स्नान, दान व मंत्रजप करने से तथा व्रत के साथ गंगाजल में स्थित होकर गंगास्तोत्र का दस बार पाठ तथा माँ गंगा का पूजन करने से दरिद्र व अक्षम व्यक्ति भी पापों से मुक्त होकर समस्त इच्छाओं की पूर्ति प्राप्त कर लेता है।
गंगा दशहरा के दिन माँ गंगा के पूजन में समस्त सामग्री दस की संख्या में चढ़ाना चाहिए। जैसे 10 पुष्प,10 पान, 10 लौंग, 10 इलायची, 10 फल, 10 मिष्ठान, 10 दीपक आदि साथ ही 10 ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान अवश्य देना चाहिए पूजन के समय “ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमो नमः” मंत्र का जप करते रहना चाहिए, गंगा स्नान के बाद गंगा तट पर श्रद्धापूर्वक चौपाई ” गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुख करनि हरनि सब सुला ” का अधिक से अधिक जप करने से भी इच्छापूर्ति होती है स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि गंगा दशहरा के दिन ही भगवान राम ने रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना किया था। अतः भगवान शिव का पूजन भी इस दिन विशेष पुण्य फलदायक है। बाल्मीकि रामायण में बताया गया है कि राजा सगर, अंशुमान, दिलीप सहित चौथी पीढ़ी के राजा भगीरथ के घोर तपस्या, श्रम, उद्योग, श्रद्धा के भगीरथ प्रयास से चार पीढ़ियों के नब्बे हजार वर्षो से अधिक की तपस्या के बाद ज्येष्ठ शुक्ल दशमी यानि दशहरा के दिन गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी पर आयी। भगीरथ के प्रयास द्वारा आने के कारण माँ गंगा का एक नाम भागीरथी भी पड़ा। अनादिकाल के ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर आधुनिक काल में रामचरितमानस तक में माँ गंगा के महिमा का वर्णन मिलता है। वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत सभी में माँ गंगा का वर्णन है। सैकड़ो किलोमीटर दूर से भी यदि गंगाजल स्नान, ध्यान या गंगा गंगा नाम जप श्रद्धापूर्वक किया जाए तो व्यक्ति पापमुक्त हो जाता है। महाभारत के वनपर्व में कहा गया है “कृतयुगे पुण्यं त्रेतायां पुष्करं स्मृतम्। द्वापरेऽपि कुरुक्षेत्रं गङ्गा कलियुगे स्मृता ॥’ अर्थात कलियुग में तो गंगा ही प्रमुख फलदायक है। गंगा स्नान के लिए गढ़मुक्तेश्वर प्रमुख महत्वपूर्ण स्थान है साथ ही ऋषिकेश, हरिद्वार,प्रयागराज, काशी, विंध्याचल (मिर्ज़ापुर), भागलपुर, सुल्तानगंज, कोलकाता, गंगासागर आदि स्थान प्रमुख है किसी कारणवश गंगाजी जाकर स्नान संभव नहीं हो तो माँ गंगा के 12 नामो का स्मरण यथा -“नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा। विष्णुपादाब्जसम्भूता गङ्गा त्रिपथगामिनी ।। भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।। का जप करते हुए स्नान करने से भी गंगा स्नान का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है गंगा दशहरा के दिन घड़े के साथ जल दान करना चाहिए, सत्तू का दान भी श्रेष्ठ फल देता है इस दिन पितरों के लिए गुड़, घी, तिल व मधु युक्त खीर गंगा जी को समर्पित (डालने) करने से पितर संतुष्ट होकर सौ वर्षो तक तृप्त होकर संतानों को आशीर्वाद व मनोवांक्षित फल प्रदान करते है ज्येष्ठ मास की दशमी तिथि बुधवार हस्त नक्षत्र वृष के सूर्य व कन्या के चन्द्रमा का संयोग होने से 5 जून को भोर 3.35 बजे से 5.24 (सूर्योदय ) तक गंगा स्नान करना विशेष शुभफल दायी रहेगा साथ ही पूरे दिन स्नान का शुभ योग है।
गंगा दशहरा पर कैसे करें पूजा अर्चना?
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